देश भर में बुनकरों की बदहाली और उस पर सरकार की उदासीनता के मुद्दे पर आज संसद में इमरान प्रतापगढ़ी ने आवाज़ उठाई।
मेरे हाथों ने तो पोशाकें बिनी रेशमी लेकिन, मेरे कपड़ो के मुक़द्दर में तो पैबंद रहे… इसी शायरी के साथ इमरान प्रतापगढ़ी ने अपनी बात शुरू की।
उन्होंने आगे कहा के “करघों के धागे टूट रहे हैं, मशीनें कबाड़ में बिक रही है, पावरलूम को सप्लाई होने वाली बिजली के बिलों का बोझ इतना भारी है कि बुनकरों के कंधे टूट रहे हैं, और टूट रही हैं उनकी उम्मीदें भी।
सरकार ने GST की लिमिट 20 लाख रखी है, हम मॉंग करते हैं की इसकी लिमिट बढ़ाकर 50 लाख की जाये,इस उद्योग को मरहम की ज़रूरत है, सस्ती बिजली मुहैया की जाये, GST के कहर से इस उद्योग को बचाया जाये।”
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