प्रिय प्रधानमंत्री मोदी जी,
जैसे कि वादा किया गया था, आपके लिए तीन प्रश्नों का आज का सेट प्रस्तुत है, HAHK -हम अदानी के हैं कौन श्रृंखला में चौथा सेट।
अडानी समूह बहुत ही कम समय में भारत में हवाई अड्डों का सबसे बड़ा संचालक बन गया है। उसे 2019 में सरकार द्वारा छह में से छह हवाई अड्डों के संचालन की अनुमति मिली और 2021 में यह समूह संदेहास्पद परिस्थितियों में भारत के दूसरे सबसे व्यस्त हवाई अड्डे, मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर काबिज़ हो गया।
1. वर्ष 2006 में, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने दिल्ली और मुंबई हवाई अड्डों को वर्षों की अवधि के लिए संचालित करने के लिए क्रमशः जीएमआर और जीवीके समूहों को अनुमति अनुमति प्रदान की। 7 नवंबर 2006 को सर्वोच्च न्यायालय ने इन निजीकरण की प्रक्रियाओं को को इस शर्त के साथ बरकरार रखा कि प्रत्येक बोलीदाता को एक अनुभवी एयरपोर्ट संचालक के साथ साझेदारी करनी होगी। भले ही जीएमआर दोनों मामलों में शीर्ष बोलीदाता के रूप में उभरा था, लेकिन प्रतिस्पर्धा के हित में दोनों हवाईअड्डों का संचालन एक साथ इस फर्म को ना देने का निर्णय लिया गया।
हवाई अड्डों के संचालन में शून्य अनुभव होने के बावजूद, 2019 में अहमदाबाद, लखनऊ, मैंगलोर, जयपुर, गुवाहाटी और तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डों को संचालित करने के अधिकार अडानी अडानी समूह को 50 वर्षों की अवधि के लिए दे दिए गए। 10 दिसंबर 2018 को, नीति आयोग द्वारा जारी एक ज्ञापन में ये तर्क दिया गया कि ‘पर्याप्त तकनीकी क्षमता ना रखने वाला बोलीदाता’ ‘परियोजना को खतरे में डाल सकता है और उन सेवाओं की गुणवत्ता से समझौता कर सकता है जिन्हें प्रदान करने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। इसमें यह भी उल्लेख किया गया कि प्रस्ताव संबंधी आदर्श आवेदन (मॉडल रिक्वेस्ट फॉर कोट्स RFQ) दस्तावेज में पहले ही हवाई अड्डा क्षेत्र से बाहर परियोजना के अनुभव के लिए अंकों का प्रावधान है, लेकिन हवाई अड्डा क्षेत्र का अनुभव महत्वपूर्ण था। एक पूर्व समाचार रिपोर्ट (दिनांक 22 अप्रैल 2018) में एक सरकारी अधिकारी के हवाले से कहा गया था कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के विभाग (डीईए) और नीति आयोग को हवाई अड्डों के निजीकरण के लिए मॉडल रियायत समझौते तैयार करने के निर्देश दिए थे। पीएमओ और सचिवों के अधिकार अधिकार प्राप्त समूह का नेतृत्व करने वाले नीति आयोग के अध्यक्ष ने इस सिफारिश की उपेक्षा!
2. जिस दिन नीति आयोग ने अपनी आपत्ति दर्ज की, उसी दिन डीईए के एक नोट में जोरदार ढंग से ये सिफारिश की गई थी कि जोखिम कम करने और प्रतिस्पर्धा को सुगम बनाने के लिए एक ही बोलीदाता को दो से अधिक हवाई अड्डों का संचालन नहीं सौंपा जाना चाहिए, जैसा कि दिल्ली और मुंबई हवाई अड्डों के निजीकरण के मामले में हुआ था। फिर भी अपने मित्रों मदद करने की जल्दबाजी में सत्तारूढ़ व्यवस्था द्वारा इस आपति को भी नजरअंदाज़ कर दिया गया। इस पूर्व शर्त को दरकिनार करने के लिए सचिवों के अधिकार प्राप्त समूह को किसने निर्देश निर्देश दिए, जिससे अडानी समूह के लिए इस क्षेत्र में एक स्पष्ट एकाधिकार स्थापित करने का रास्ता साफ़ हो गया?
3. अडानी समूह द्वारा मुंबई हवाई अड्डे के अधिग्रहण को ‘क्रोनी कैपिटलिज्म’ पर एक केस स्टडी के रूप में लिया जाना चाहिए। वर्ष 2019 में जीवीके समूह ने मुंबई हवाई अड्डे में हिस्सेदारी खरीदने के अडानी समूह के प्रयासों, अदालतों में जाने और संयुक्त उद्यम भागीदारों ‘बिडवेस्ट’ और ‘एसीएसए को खरीदने के लिए धन जुटाने का जोरदार प्रतिरोध किया था। फिर भी अगस्त 2020 में, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा की छापेमारी के केवल एक महीने बाद, जीवीके समूह अपनी सबसे मूल्यवान संपति अडानी समूह को बेचने के लिए मजबूर हो गया। जीवीके के खिलाफ सीबीआई और ईडी की जांच का क्या हुआ? अडानी समूह को मुंबई हवाई अड्डे की बिक्री के बाद ये जांच चमत्कारिक रूप से कैसे गायब हो गई? क्या उन मामलों का इस्तेमाल जीवीके पर उसी समूह का बचाव करने के लिए दबाव बनाने के लिए किया जा रहा है जिसने उसे भारत के दूसरे सबसे व्यस्त हवाई अड्डे को बेचने के लिए मजबूर कर दिया था?
– श्री जयराम रमेश, संसद सदस्य, महासचिव (संचार), भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा जारी!