संवाददाता, इन्द्रभूषण (सुपौल): पिपरा प्रखंड क्षेत्र के लिटियाही में दुर्गा पूजा के शुभ अवसर पर अन्य वर्ष के भांति इस वर्ष भी प्रथम पुजा से ही 9 दिवसीय श्री राम कथा का आयोजन किया गया। जहां अयोध्या धाम से चलकर आई कथा वाचिका साध्वी बिंदु भारती अपने कथा के दुसरे दिन कहा कि कहते हैं हरि अनंत, हरि कथा अनंता। सबसे पहले श्रीराम की कथा हनुमानजी ने लिखी थी फिर महर्षि वाल्मीकि ने। वाल्मीकि राम के ही काल के ऋषि थे। उन्होंने राम और उनके जीवन को देखा था। वे ही अच्छी तरह जानते थे कि राम क्या और कौन हैं लेकिन जब सवाल लिखने का आया, तब नारद मुनि ने उनकी सहायता की। कहते हैं कि राम के काल में देवता धरती पर आया-जाया करते थे और वे धरती पर ही हिमालय के उत्तर में रहते थे। रामायण के बाद राम से जुड़ी हजारों कथाएं प्रचलन में आईं और सभी में राम की कथा में थोड़े-बहुत रद्दोबदल के साथ ही कुछ रामायणों में ऐसे भी प्रसंग मिलते हैं जिनका उल्लेख वाल्मीकि रामायण में नहीं मिलता है। राम की कथा को वाल्मीकि के लिखने के बाद दक्षिण भारतीय लोगों ने अलग तरीके से लिखा। दक्षिण भारतीय लोगों के जीवन में राम का बहुत महत्व है। कर्नाटक और तमिलनाडु में राम ने अपनी सेना का गठन किय। वाल्मीकि रामायण और बाकी की रामायण में जो अंतर देखने को मिलता है वह इसलिए कि वाल्मीकि रामायण को तथ्यों और घटनाओं के आधार पर रामकथा सुनाई, जैसे बहुत समय बाद तुलसीदास को उनके गुरु ने सोरों क्षेत्र में रामकथा सुनाई। इसी तरह जनश्रुतियों के आधार पर हर देश ने अपनी रामायण को लिखा। रामकथा सामान्यतः बताने के लिए सुनाई जाती है। रामायणों की संख्या और पिछले 25 सौ या उससे भी अधिक सालों से दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में उनके प्रभाव का दायरा बहुत व्यापक है। सर्वप्रथम श्रीराम की कथा भगवान श्री शंकर ने माता पार्वतीजी को सुनाई थी। उस कथा को एक कौवे ने भी सुन लिया। उसी कौवे का पुनर्जन्म कागभुशुण्डि के रूप में हुआ। काकभुशुण्डि को पूर्व जन्म में भगवान शंकर के मुख से सुनी वह रामकथा पूरी की पूरी याद थी। उन्होंने यह कथा अपने शिष्यों को सुनाई। इस प्रकार रामकथा का प्रचार-प्रसार हुआ। भगवान शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा अध्यात्म रामायण के नाम से विख्यात है। कथा वाचिका साध्वी बिन्दु भारती अपने मधुर स्वर से श्रद्धालुओं को कथा का आनंद दे रही है और हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर राम कथा को सुन रहे हैं। सार्वजनिक दुर्गा पूजा मेला समिति लिटायाही के अध्यक्ष विपिन बिहारी ने बताया लगातार 13 वर्षों से पूरे ग्राम वासियों की सहयोग से इस दुर्गा पूजा मेला का सफल आयोजन करते आ रहे हैं और आशा ही नहीं पुर्ण विश्वास है कि आगे भी सफल होते रहेंगे।