ग्रामीण सालों से जिन पत्थरों को कुल देवता मानकर पूजा-अर्चना की जा रही थी, वह असल में पत्थर नहीं बल्कि करोड़ों वर्ष पुराने डायनासोर के अंडे निकले हैं।
MP News: धार जिले में एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है. धार के ग्राम पाडलिया के ग्रामीण सालों से जिन पत्थरों को कुल देवता मानकर पूजा-अर्चना की जा रही थी, वह असल में पत्थर नहीं बल्कि करोड़ों वर्ष पुराने डायनासोर के अंडे निकले हैं. डायनासोर के अंडों के रूप में ग्रामीणों के कुल देवता की पहचान होने के बाद प्रशासन हरकत में आया और उनकी जांच कर रहा है.इस खुलासे के बाद वैज्ञानिकों का कहना है कि ये डायनासोर का अंडा है, लगभग 18 सेंटीमीटर इसका व्यास है .यह इलाका करीब 6.5 करोड़ साल पहले डायनासोर का क्षेत्र हुआ करता था. जहां ग्रामीण इन्हें पूज रहे हैं.
डायसोर युग से जुड़ा है इतिहास:
नर्मदा घाटी का यह इलाका करोड़ों वर्ष पहले डायनासोर युग से जुड़ा रहा है. यह करीब 6.5 करोड़ साल पहले डायनासोर का क्षेत्र हुआ करता था. ये डायनासोर फॉसिल्स पार्क है, जहां मिले पत्थरों को ग्रामीण पत्थर समझकर उसे देवता के रूप में पूज रहे थे. ये जो अंडे हैं वो बिल्कुल गोल पत्थर मिलते हैं. इसके साथ ही गोल पत्थरों उन्हें भी वो काकड भैरव व अन्य भेरू के नाम से पूजते थे, जिसके कारण ये जिवाष्म संरक्षित भी रहे और ये सुंदर परंपरा जो हम दुनिया को दिखा सकते हैं.
अंडों को काकड समझ रहे थे ग्रामीण:
काकर’ का अर्थ है भूमि या खेत और ‘भैरव’ भगवान को कहते हैं। ग्रामीणों की आस्था है कि कुलदेवता की पूजा करने से गांव पर कोई संकट नहीं आता है. काकड भैरव जो एक परंपरा है, जिसमें गोल पत्थरों का पूजन किया जाता है. गोल पत्थरों में डायनासोर के अंडे भी शामिल किए गए थे, जो खेत की सीमा पर पूजे जाते थे. इनको सिंदूर लगाते हुए या न लगाते हुए इन्हें खासकर अंजर के पेडों के नीचे बहुत सारे पत्थरों के बीच में रख दिया जाता है. ये पूजा की वहां परंपरा रही है.
कैसे हुआ खुलासा?
स्थानीय डायनासोर विशेषज्ञ विशाल वर्मा ने बताया कि कुछ दिन पहले दिसम्बर महीने में तीन वैज्ञानिकों का वर्कशॉप आयोजित किया गया था. इस वर्कशॉप में डॉ. महेश ठक्कर, डॉ. विवेक वी कपूर, डॉ. शिल्पा ये वैज्ञानिक हैं, ये सभी डायनासोर फॉसिल्स पार्क के वैज्ञानिक और विकास कार्य का जायजा लेने और विनियोजित जो योजना है उस पर काम करने आएं थे. इसी दौरान इसका खुलासा हुआ.