संवाददाता, इन्द्रभूषण (सुपौल): पिपरा प्रखंड क्षेत्र अन्तर्गत सुपौल- पिपरा के मध्य भाग निर्मली बाजार में अवस्थित सार्वजनिक बड़ी दुर्गा मंदिर की महिमा अपरंपार है। यहां की दशहरा मेला आसपास के इलाके में प्रसिद्ध माना जाता है। प्रथम पुजा से ही यहां मंदिर परिसर में पुजा अर्चना करने वाले श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगी रहती है। साथ ही संध्याकालीन आरती के समय जब मां की आरती शुरू होती है तो हजारों की संख्या में महिला पुरुष श्रद्धालु गांव की महिला पुरुष कतारबद्ध होकर मां का आशीर्वाद लेते हैं। खासकर नवमी व दशमी के दिन प्रतिमा दर्शन के साथ – साथ भव्य मेले का लुत्फ उठाने के लिए हजारों लोगों की भीड़ जुटती है। यह मंदिर पिपरा प्रखंड सहित आसपास के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। करीब सात दशक पूर्व इस मंदिर की स्थापना ग्रामीणों द्वारा की गई थी। गांव वासियों के द्वारा स्थापना काल के समय से ही यहां देवी दुर्गा की पुजा अराधना आस्था के साथ की जा रही है। लोगों का माता पर अटूट विश्वास बना हुआ है। भले ही यह कोई शक्तिपीठ नहीं है लेकिन आसपास के लोगों के लिए कोई शक्तिपीठ से कम नहीं है। दशहरा के दौरान यहां दुर्गा पूजा का भव्य आयोजन किया जाता है। इस देवघारा से मांगी गई मन्नत पूरी होने वाले श्रद्धालुओं द्वारा माता की प्रतिमा का निर्माण कराया जाता है। इसके लिए मन्नतें पूरी होने वाले श्रद्धालुओं को प्रतिमा निर्माण के लिए अपने नम्बर का सालों साल इन्तजार करना पड़ता है।
1956 ई में फूस का घर बना प्रतिमा निर्माण कर शुरू की गई थी पुजा अर्चना, बाद में बना भव्य मंदिर।
स्थानीय ग्रामीणों के मुताबिक यहां एक पीपल का वृक्ष था जहां शाम होते ही आसपास के क्षेत्र सुगंधित हो जाता था। लेकिन लोग इस ओर ध्यान नहीं देते थे। कहते हैं गांव के ही एक व्यक्ति को माता का स्वप्न आया कि पीपल वृक्ष के नीचे उनकी पुजा करें। लेकिन उस व्यक्ति ने स्वप्न समझकर इस बात को अपने अंदर ही रखा । कुछ दिनों बाद दुर्गा पूजा का समय नजदीक आया तो शाम ढलते ही इस पीपल वृक्ष के नीचे अजीब तरह की आवाजें सुनाई पड़ती थी। ग्रामीण बताते हैं कि जब गांव के लोग वहां पहुंचे तो कुछ भी नहीं दिखाई दिया। सिर्फ एक अलग प्रकार कि सुगंध आ रही थी। यह सिलसिला दो तीन दिनों तक चलती रही । बाद में ग्रामीणों को वहां किसी ना किसी देवी देवताओं के प्रवास का आभास हुआ। तब जाकर 1956 ई में स्थानीय ग्रामीणों की मदद से वहां एक फुस का घर बनाकर माता दुर्गा की प्रतिमा निर्माण कर पुजा अर्चना शुरू की गई। धीरे धीरे ग्रामीणों की सहयोग से यहां भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। तब से आज तक यहां मां दुर्गा की पुजा अर्चना बहुत ही धुमधाम से की जा रही है। श्रद्धालुओं का ऐसा विश्वास है कि सच्चे दिल से यहां जो भी मन्नतें मांगी जाती वह पूरी हो जाती है। और अब ये दुर्गा मंदिर इतना भव्य रूप से बनाया गया कि आकर्षक का केंद्र बना हुआ है।
बली प्रदान की है प्रथा।
नवमी के दिन से यहां बली प्रदान करने वालों की तादाद काफी अधिक होती है। जिसके लिए बली करवाने वाले श्रद्धालुओं को पहले से नम्बर लगाना पड़ता है तब जाकर सुबह से ही बली प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है जहां सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर बली चढ़ाते है। हालांकि जिनकी मनोकामना पूर्ण होती है वे अन्य दिन भी यहां आकर माता के दरबार में बली चढ़ाते हैं।
पुजा के साथ लगेगा भव्य मेला।
सार्वजनिक बड़ी दुर्गा मंदिर पुजा मेला समिति के अध्यक्ष शशिभूषण मंडल, सचिव हरिनंदन मंडल ने बताया कि अन्य साल के भांति इस वर्ष भी दशहरा के मौके पर यहां माता की भव्य पुजा अर्चना के साथ मेला लगाया जा रहा है जिसके मद्देनजर जोर सोर से तैयारी की जा रही है। मंदिर सहित पूरे मेला ग्राउंड में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं ताकि भीड़ होने पर निगरानी की जा सके। साथ ही इस आयोजन में कमिटी की ओर से मेला में हुड़दंग मचाने वाले लोगों के लिए 101 स्वयं सेवक भी तैयार किया गया है और पुलिस जवान की भी तैनाती जिसके द्वारा मेला पर पैनी नजर रखी जाएगी। विभाग के द्वारा दिए गए हर निर्देशों का पालन किया जा रहा है।