रिपोर्ट : सानु झा
कोई भी राजनीतिक पार्टी जब राजनीति करती है तब उनके अपने मानक और पैमाने होते हैं। उसी हिसाब से उनका वोट बैंक भी रहता है। राजनीतिक पार्टियां भले अपने वोट बैंक में विस्तार चाहती रहती है परंतु, वह अपनी पारंपरिक वोट बैंक में सेंधमारी ना हो इसको लेकर हमेशा रणनीति बनाते रहती है। अब बिहार NDA के दो घटक दल अपने वोट बैंक का विस्तार विभिन्न जातीयों के आधार पर करने जा रही है। एक तरफ जहाँ BJP अपनी कोर सवर्ण वोटर्स को मजबूती प्रदान करने का कोई कसर नहीं छोड़ती, वहीं अब पिछड़ा और अति पिछड़ा को अपने पाले में लाने का भरसक प्रयास कर रही है। इधर JD(U) अब पिछड़े और अति पिछड़े की राजनीति से ऊपर उठकर सवर्णों के तरफ अपना शीश झुका रही है।
अब पिछड़ा और अति पिछड़ा को साधेगी BJP, सम्राट चौधरी से कहीं उठ तो नहीं रहा विश्वास ?
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले जब नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन के पाले में थे तब BJP को पिछड़ा और अति पिछड़ा वोटरों की काफी चिंता और दरकार थी। विभिन्न दलों के घाटों का पानी पीने वाले नेता सम्राट चौधरी को बिहार BJP ने अपना अध्यक्ष चुना। कुशवाहा समाज से आने वाले सम्राट चौधरी से BJP को बड़ी उम्मीदें थी। BJP को लगता था कि वह नीतीश की लव-कुश समीकरण को चौधरी तोड़ सकते हैं। लेकिन BJP को निराशा हाथ लगी। अंततः BJP मन मसोस कर रह गयी। फिर परिस्थितियां बदली नीतीश इंडिया गठबंधन के दामन पर समय का कद्र नहीं होने का आरोप लगाते हुए NDA में स्वयं की वापसी कर ली। जो भाजपा के नेता सुबह, शाम नीतीश पर कुशासन और दल बदलने का आरोप पानी पी-पी कर लगा रहे थे; अब उनके मुँह पर तत्काल ताला लटक गया। बिहार में फिर नीतीश NDA वाली सरकार बनी । पारंपरिक वोट को इनटैक्ट् रखने के लिए BJP ने भूमिहार जाति से आने विजय सिन्हा को उप मुख्यमंत्री बनाया और अपने पाले में कोइरी-कुशवाहा को समेटने के लिए सम्राट चौधरी को दूसरा उप मुख्यमंत्री बनाया।
जब देश में लोकसभा का चुनाव हुआ तब लगातार बिहार में NDA को 40 में से 40 सीटें जिताने की बात करने वालों में से एक सम्राट चौधरी; ना तो अपने जाति से कोई उम्मीदवार BJP के बैनर तले खड़ा करवा सके और ना ही अपनी पार्टी को अपने समाज का वोट दिलाने में सफल रहे। परिणाम हुआ कि शाहाबाद का इलाका BJP के हाथ से निकल गया और इंडिया गठबंधन को 10 सीटें बिहार में मिली। नीतीश के आने के बाद BJP को कोइरी-कुशवाहा वोटर्स की परेशानी खत्म हो गयी है, जिससे कयासों का बाजार गर्म है कि
सम्राट चौधरी का अध्यक्ष पद BJP वापस लेने जा रही है। वहीं कई मीडिया साइटों की माने तो उप मुख्यमंत्री के पद पर भी तलवार लटकता नज़र आ रहा है; हालांकि इस बात की पुष्टि हम नहीं करते।
JD(U) का सेफ है पिछड़ा और अति पिछड़ा वोट बैंक, सवर्णों पर जारी है प्रयोग
ऐसी बात नहीं है कि सवर्ण नीतीश को वोट नहीं देते; एकमुश्त सवर्णों का वोट कमोवेश BJP को मिलता रहा है। JD(U) हमेशा सवर्णों का अच्छा वोट पाने की लालसा रखता है। इसका प्रमाण सवर्ण नेता सह पूर्व केंद्रीय मंत्री RCP सिंह से के जमाने से मिलता रहा है। फिर ललन सिंह पर नीतीश ने दांव खेला उसके बाद अब राज्यसभा सांसद संजय झा को राष्ट्रीय कार्यकारिणी का अध्यक्ष बनाया गया। लोकसभा चुनाव में 16 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली JD(U) को 12 सीटें मिली, बावजूद इसके नीतीश और उनके पार्टी नेताओं की खुशी सातवें आसमान पर थी; कारण नीतीश के सियासी इकबाल पर प्रश्न उठा रहे लोगों को पुरजोर जवाब मिला। इस लोकसभा चुनाव के परिणाम में नीतीश का इकबाल आज भी अपनी जातियों पर पूर्व के जैसे ही बना है यह साबित हो गया।
प्रयोगशाला रहा उपचुनाव, जिसमें असफल रही JD(U) और BJP
पूर्णिया लोकसभा अंतर्गत रुपौली में उपचुनाव के दौरान ना जीत NDA को मिली और ना ही महागठबंधन को। जीत का सेहरा निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह के माथे चढ़ा। ना JD(U) का लव-कुश कार्ड, ना BJP का अगड़ा और पिछड़ा कार्ड और ना ही RJD की माय-बाप वाली राजनीति चली। विधानसभा में कमोवेश हर जाति का वोट निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह को मिला। BJP और JD(U) के सभी जातीय समीकरण आधारित नेताओं ने लगातार रुपौली में अपना खूंटा जमाये रखा; अंततः जीत शंकर सिंह की हुई और सभी पार्टियां पूर्णतः असफल रही।